चर्चा है कि इस बार राजस्थान में ईडी चुनावी नेरेटिव सेट कर रही है। आचार संहित के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं को रडार पर लेने से चुनावी चर्चाओं के बीच कांग्रेस एकजुट नजर आ रही है। बीते पांच सालों मेंं भले कांगे्रस के भीतर मुद्दों को लेकर विरोधाभास देखे जाते रहे, लेकिन ईडी ईडी के खेल में टीम कांग्रेस की जुगलबंदी अच्छा मैसेज देने में कामयाब हो रही है।
परिणाम क्या निकलेंगे यह समय बताएगा, लेकिन फिलहाल चुनावी रैलियों, भाषणबाजी, जनता के बीच पहुंचने के समय में ईडी दिल्ली आने और बयान देने की प्रक्रिया करेगी तो निश्चित ही नेताओं के कैंपेन प्रभावित हो सकते हैं। लेकिन देखने वाली बात है कि जिस तरह के आरोप ईडी को लेकर लगाए जा रहे हैं कि ईडी केन्द्र सरकार के इशारे पर कांग्रेसी नेताओं को घेरने का प्रयास कर रही है, तो इस माहौल में कांग्रेस नेताओं के ऐसे आरोपों को सही मान भी लेते हैं तो यह भी मसला है कि इससे भाजपा को कोई फायदा अब होगा? दिल्ली बैठे नेताओं को राजस्थान की जनता किस दिशा और किन इमोशंस के साथ सोचती है यह विचार भी उन्हें गौर करने का मौका दे सकता है।
बहरहाल यह माना जा रहा है कि एक और मंत्री के पीछे अब ईडी पडऩे की तैयारी में है। पहले भी एक मंत्री ईडी की जांच की जद में आ चुके हैं। बीते कुछ दिनों से इस बात की भी चर्चा है कि चुनावों से पहले एक मंत्री गिरफ्तार भी हो सकते हैं। सब कुछ चर्चाओं और सुगबुगाहटों में है। लेकिन चुनावी डंका बजने के बाद राजस्थान की जनता किस मनोस्थिति से सोचती है, अंतत: यही बात परिणामों को प्रभावित करेगी। गोविंद सिंह डोटासरा, ओम प्रकाश हुडला और वैभव गहलोत तीनों के चर्चे आम हैं। चलिए देखते हैं कौन ईडी से फायदा लेगा और किसका हो सकता है नुकसान -
- राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बाद बीते पांच सालों में कोई सबसे ज्यादा चर्चा में रहा है तो वह गोविंद सिंह डोटासरा हैं।
- डोटासरा शिक्षा मंत्री रहते परफोर्मेंस के आधार पर गहलोत मंत्रीमण्डल के नंबर वन नेता भी रह चुके हैं।
- प्रधान से विधायक, विधायक से मंत्री और मंत्री से प्रदेशाध्यक्ष तक दो दशक के सफर के बाद डोटसरा को कांग्रेस इस चुनावी कैंपेन में नंबर 2 चेहरा बना कर पेश कर चुकी है। जहां पिछले चुनावों में कांग्रेस के चार पोस्टर बॉय थे गहलोत, सचिन, सी.पी. जोशी और रामेश्वर डूडी वहीं इस बार 2 ही पोस्टर बॉय हैं। जिसके मायने सीधे निकाले जा रहे हैं कि गहलोत और सचिन विवाद में तीसरा सबसे बड़ा चेहरा अब डोटासरा बन चुके हैं।
- डोटासरा बोल्ड नेता माने जाते हैं, लेकिन बीते तीन-चार महीने में उन्होंने अपनी ब्रांडिंग को नेक्स्ट लेवल दिया है। पार्टी में पीआर संभाल रही कंपनी डिजाइन बॉक्स के मामले में उनका मजबूत स्टैंड मुख्यमंत्री गहलोत को उनके घर तक खींच लाया और दिल्ली तक उनके स्टैंड को मजबूत माना गया वहीं ईडी मामले में डोटासरा बोल्डनेस के साथ जवाबी हमले करने में कामयाब रहे हैं।
इधर वैभव गहलोत को देखें, तो जब से ईडी का मामला आया है वैभव विधानसभा के दंगल में नहीं होने के बावजूद अच्छे चर्चा में आए हैं। जहां दो-तीन साल पहले तक वैभव एक चॉक्लेटी इमेज में बंधे नजर आते थे और पिताजी के राजनीतिक औरा में खुद को खड़ा करने का प्रयास करते दिखाई देते थे, अब खुलकर बोल रहे हैं। उनको भी इस मामले में बोल्डनेस दिखाने का और राजनीति में चॉक्लेटी इमेज बे्रक करने में फायदा मिलेगा।े
इधर ओमप्रकाश हुडला को लें तो कभी भाजपा में रहे महवा के इसे नेता को इस बार कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है। 2013 में हुडला कस्टम अधिकारी की नौकरी छोड़कर भाजपा की टिकट लाने में कामयाब रहे और विधायक भी बने। उन्होंने गोलमा देवी को हराया था तो तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उन्हें संसदीय सचिव भी बनाया था। किरोड़ीलाल मीणा और हुड़ला का 36 का आंकड़ा है। 2018 में किरोड़ी ने हुड़ला को महवा से साफ करने की कोशिश की, तो इस बार कांग्रेस ने हुडला को टिकट देकर बड़ा दांव खेल दिया है। हांलांकि यहां भीतर भीतर हुडला को टिकट देने का विरोध भी है लेकिन चार बार से महवा सीट हार रही कांग्रेस को हुडला में उम्मीद नजर आ रही है। ऐसे में ईडी की हुडला पर पेपर लीक मामले में छापेमारी हुडला को कुछ नहीं मिलने पर मजबूत बना सकती है। इधर उनका मां के साथ रोने का विडियो भी वायरल हुआ है,जो सेंटिमेंट्स और चुनावी सरगर्मियों में प्रभावना छोड़ सकता है।
कुल मिलकार ईडी का जिन्न किसी को पकड़ पाएगा या नहीं यह अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा लेकिन फिलहाल जहां हर दिन महत्त्वर्पूण है सहां ईडी के जितने चर्चे चलेंगे, कांग्रेसी नेता उसकी मार्केटिंग अपने फेवर में करके अच्छा लाभ लेते दिख रहे हैं। दूसरा भले दिल्ली में बैठे बड़े नेताओं को लग रहा है कि इससे नेता दबाव में आ जाऐंगे , लेकिन वह राजस्थान की जनता के सेंटीमेंट्स को समझने की भूल कर रहे हैं, जो जनता दया और करुणा के भाव पर भी वोट टिका देती है, उसको भुनाने का काम स्थानीय नेता कर जांएंगे।
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