जयपुर। सरकारी नौकरी की आस में अपने सालों-साल झोंकने के बाद कोई मौका मिले और वह भी ऐसा कि परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो, तो यह युवा सपनों पर कुठाराघात है। राजस्थान सरकार में ऐसे ही हाल हैं पंचायत सहायकों के। पगार मात्र 6600 रुपए, वह भी मात्र 600 रुपए की बढ़ोतरी के साथ। सालों से यह पंचायत सहायक न केवल नियमित होने की बाट जोह रहे हैं, बल्कि अपने पंचायत सहायक बनकर जीवन के महत्त्वपूर्ण साल बर्बाद करने को भी कोसने लगे हैं।
Vidhayak.com को लगातार पचायत सहायकों की ओर से समस्यों से अवगत करवाया जा रहा है। प्रदेशभर से सैंकड़ों पंचायत सहायक अपनी आवाज उठाने के लिए हम तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं। इन पंचायत सहायकों ने Vidhayak.com की टीम को अपना दर्द बयां करते हुए बताया, 'कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में हम पंचायत सहायकों को नियमित करने का वायदा किया था। सरकार ने केवल मानदेय बढ़ाया और 10 प्रतिशत मानदेय को आधार बनाकर वाह-वाही लूट ली। लेकिन हमारे हाथ क्या आया, कुछ नहीं। आप खुद बताएं 6600 रुपए में हम अपना परिवार कैसे चलाएं?'
पंचायत सहायकों ने जानकारी देते हुए बताया कि, 'हमें जो वेतन मिल रहा है वह एक नरेगा मजदूर से भी कम है। बस ठप्प लगा दिया गया है कि हमारी सरकारी नौकरी है, लेकिन वह भी नियमित नहीं की गई है। बाड़मेर से एक पंचायत सहायक कहते हैं, हमारे 27 हजार पंचायत सहायकों में से 80 प्रतिशत से ज्यादा एम.ए., बीएड हैं और बीएसटीसी भी कर चुके हैं, लेकिन हमारी हालत मजदूरों से कम नहीं है।'
गौरतलब है कि इन 27 हजार कार्मिकों को वर्ष 2008 में विद्यार्थी मित्र के पद पर 2700 रुपए में नियुक्ति दी गई थी। 2014 में इन्हें विद्यालयों से कार्यमुक्त कर दिया गया। विरोध प्रदर्शन किया गया, तो सरकार पर दबाव बना और इन्हें 2017 में संविदा पर पंचायत सहायक के पद पर नियुक्ति दी गई। अब बीते चार सालों से यह पंचायत सहायक स्कूलों में कार्यरत हैं।
इधर पंचायत सहायकों की बड़ी तादाद और इनके परिवारों में सरकार के प्रति भारी रोष है। पंचायत सहायकों का कहना है कि सरकार ने चनावी घोषणा पत्र में वायदा किया था, लेकिन वायदा भूल गई है। केवल हमें 600 रुपए की लॉलीपॉप थमा दी गई है।
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